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खुद को ये क्या बना रखा है

क्या हो तुम और खुद को ये क्या बना रखा है
धुप से लड़ने वाले को छांव ने कैद बना रखा है

कभी था दोस्तों संग सुबह से शाम तक धुँवा-धुँवा
बाहर निकलना तो दूर खुद को घर में छुपा रखा है

यूँ ही नहीं बढ़ते ये जुल्मो सितम के हौसले
जो लोग बोल सकते है सबने मुंह बंद कर रखा है

याद है मुझे बहुत थक गया था एक घर बनाने में 
न जाने वो कैसा होगा जिसने ये जहां बना रखा है

रात बनाई  है  तो मुझे नींद भी दे मौला
वरना तूने ये दिन -रात क्यूँ बना रखा है

                                      गोविन्द कुंवर