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तेरे उम्र का यूँही  ख़सारा हुआ

न तुम किसी के हुए न कोई तुम्हारा हुआ
"गोविन्द" तेरे उम्र का यूँही  ख़सारा हुआ
न कोई सनम मिला और न ही खुदा तुम्हारा हुआ
डूब मरो गढ़े में दूर दरिया का तुमसे किनारा हुआ
वादा क्या था जिंदगी तुम्हारे साथ कैसा गुजारा हुआ
माफ करना मिट्टी तेरे क़र्ज़ का मुझसे न उतारा हुआ
न तुम किसी के हुए न कोई तुम्हारा हुआ
"गोविन्द" तेरे उम्र का यूँही  ख़सारा हुआ
                                                   गोविन्द कुंवर