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पिंजरा नहीं बनाऊंगा

मिट्टी पे रहता हूँ कोई आरज़ू नहीं कि चाँद पे जाऊंगा
कोशिस है मिट्टी के चराग को ही एक दिन चाँद बनाऊंगा
तनहा हूँ तो क्या कभी फरेबी बातों का जाल नहीं बनाऊंगा
मेरे छत पे कबूतर आये न आये मैं पिंजरा नहीं बनाऊंगा
झूठ तेरे साथ सब हुजूम है मैं सबसे पीछे तनहा रह जाऊंगा
चलते-चलते थक जाऊंगा गैर कंधे को सीढ़ी नहीं बनाऊंगा
                                                   गोविन्द कुंवर