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मेरे ख्वाब क्या है

रात नींद से उलझ सकती है, मेरे ख्वाबों से नहीं
रात को मालूम है मेरे ख्वाब क्या है
ख्वाब हक़ीक़त भी हो सकते है,सिर्फ ख्वाब नहीं 
ख्वाब को मालूम है इसे देखता कौन है
                                        गोविन्द कुंवर