एक ख्वाब है
मेरा भी एक ख्वाब है जो सपने में सच हो गया
यकीन नहीं हो रहा लेकिन मैं हकीकत में डर गया
सपना था सच्चाई नहीं लेकिन सच्ची बात कह गया
मेरा डर मेरा दुश्मन मेरी कमजोरी सब मेरे अंदर है
वरना मेरा ख्वाब तो मुझे कहाँ से कहाँ तक ले गया
गोविन्द कुंवर