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बड़ा होकर

बड़ा होकर कुछ मज़ा नहीं ये ज़िंदगी 
क्या अब यूँ ही बसर जिंदगी होगी
अपनी मर्ज़ी से तुझे जी तो लूं ये ज़िंदगी
लेकिन बच्चों की ज़िद कैसे पूरी होगी
                                      गोविन्द कुंवर