फिर वही दोस्त
फिर वही दोस्त,वही बातें,शहर का वही मयखाना
तू सबकी हैशियत तो बदल देगा ऐ वक़्त
हम अपनी हरकतों से कैसे बाज आएंगे
पियो जमकर मगर,याद रहे घर भी हैं जाना
कमीने कम नहीं है ये पर तुझसा नहीं ऐ वक़्त
थोड़ा ठहर कर गुजर,क्या पता हम कब गुजर जायेंगे
माना,रफ़्तार से लबरेज़ है वक़्त का ये पैमाना
तू तेज़ भाग और तेज़ भाग ऐ वक़्त
तुझे खींचकर एक दिन फिर यही लाएंगे
गोविन्द कुंवर