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कौआ कान ले गया------किसने देखा ?

कौआ कान ले गया------किसने देखा ?

गांव में हर तरफ ये खबर फैल गयी थी कि काला कौआ कान काट कर ले जा रहा है। ये खबर आग की तरह आस-पास के सभी गॉंवो में भी फैल गयी और सभी गांव के लोग उस काला कौआ को ढूंढने लगे, लेकिन वो काला कौआ कही नहीं मिला। गांव के ही एक बुजुर्ग व्यक्ति ने सलाह दी कि सबसे पहले उस आदमी को ढूंढा जाये जिसकी कान काला कौआ ने काटा हैं। लेकिन बहुत ढूंढने कि बाद भी एक भी आदमी ऐसा नहीं मिला जिसका कान काला कौआ ने काटा हो। आखिरकार ये बात अफवाह साबित हुई और धीरे-धीरे लोग इस बात को भूल गए । 
इस अफवाह की सूचना वहाँ  के मंत्री और फिर मंत्री के द्वारा राजा तक पहुंची और दोनों बहुत चतुर थे। इस बात को प्रजा भूल गयी लेकिन मंत्री और राजा नहीं भूले।  दोनों ने मिलकर इस बात पर बहुत चर्चा की और बहुत सारा धन और समय बर्बाद किया। राजा के ही दरबार के कुछ विद्वानों ने इस बात पर नाराजगी जताई कि अफवाह जैसी बातों पे चर्चा करने से प्रजा का कोई हित नहीं होगा अतः इस चर्चा को तुरंत रोका जाना चाहिए क्योंकि ये प्रजा के हित में बिलकुल भी नहीं है। लेकिन राजा ने मंत्री कि मदद से उन सभी विद्वानों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जिसने भी अफवाह वाली बात पे चर्चा का विरोध किया था। 
चर्चा के बाद राजा और मंत्री  इस बात पे आश्वस्त हो गए कि अफवाह के दौरान हमें शासन चलाने में कोई दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। अफवाह के दौरान सभी जनता अपनी रोज़ी-रोटी, भूख-प्यास और गरीबी भुलाकर सिर्फ अफवाह वाली बातों पे ध्यान दे रही थी। 
उसके बाद से राजा और निकम्मा हो गया, जब भी उसके  राज्य की जनता में राजा के विरोध के सुर उठते या वो राज्य चलाने में नाकाम होता, मंत्री की मदद से एक नया शिगूफा या अफवाह छोड़ देता और जनता बेचारी मुद्दे से भटक जाती और वो राजा आराम से मरते दम तक राज किया। 
आज भी वो काला कौआ कभी काला धन के रूप में बाहर आ जाता है तो कभी नोटबंदी के रूप में और जनता को बताया जाता है कि हमारे देश का इतना पैसा विदेशो में हैं कि एक बार तो मैं जीरो लगाते-लगाते चकरा गया था।  जब बाबा ने काळा धन का पूरा हिसाब दिया तब अगर आर्यभट्ट जी  ज़िंदा होते तो वो भी सोचने लगते कि मैंने जीरो का आविष्कार काले धन के लिए तो नहीं किया था । हमारे बाबा ने पूरा हिसाब ही नहीं दिया जबकि एक-एक आदमी के हिस्से में कितना रूपया आएगा उसका भी हिसाब बता दिया। बाबा कितने बड़े गणितज्ञ हैं आप इसका अंदाजा इसी बात पे लगा सकते है कि 20-30 रूपए किलो वाला आंवला 300-400 रूपए किलो में बेचते हैं।  उनके प्रचार प्रसार के बौछार से अभिभूत होकर  एक बार मै भी अपने अट्टा चकी वाले के पास गया और उसको 2 बार घूर के देखा कही ये विदेशी तो नहीं है ।  

फिर आया नोटबंदी वाला फैसला और इसने तो इतनी धूम मचाई कि गरीबो को लगने लगा कि चलो अब तो अमीर फिर गरीब हो जायेंगे या सब बराबर हो जायेंगे ,लेकिन हुआ क्या ,कौन लोग एटीएम कि लाइन में लगे ? कौन से लोग भूखे मरे ? कोई अमीर मरा क्या ? एक तो न्यूज़ एंकर उसका नाम कौन चौधरी हैं उसने तो बोल दिया कि 2000 रुपये के नोट में चिप लगा रहेगा, मै वो नोट आजतक ढूंढ रहा हूँ कल तक देखकर। 

आज फिर मीडिया ने सुशांत सिंह राजपूत वाले काले कौवे को निकाल लिया है। सरकार ने निकाला है या मीडिया ने पता नहीं लेकिन अफवाह का बाजार बिलकुल वैसे ही गर्म है जैसे सरकार को सूट करता है। 
बैंको कि हालत ख़राब हैं ,यकीन मानिए सरकारी बैंको कि हालत बहुत ख़राब हैं, कोरोना और सरकार कि गलत नीतियों की वजह से लोग आज सड़क पे आ गए है  
लेकिन सरकार और मीडिया को बस सुशांत सिंह राजपूत का केस दिख रहा है और देश में जैसे  कोई समस्या ही नहीं है।  मुंबई पुलिस, बिहार पुलिस ,सीबीआई, ईडी और न जाने किसको किसको लगा रखा है। कौन नहीं चाहता हैं कि सुशांत के परिवार को न्याय मिले , लेकिन कौन न्याय देगा सीबीआई या मीडिया ? जिसे न्याय देना हैं वो न्याय व्यवस्था तो लचर अपाहिज,खोखला और खंडहर हो चुकी हैं।  अपर्याप्त संख्या में बेगैरत, निकम्मे और नालायक लोग न्यायपालिका में बैठे है ,जनता किससे न्याय कि उमीद करे ? लोगों को अगर अदालत और न्यायपालिका पे भरोसा होता तो वो लोग जो अपने माँ बाप से सीधे मुंह बात तक नहीं करते ऐसे लोग भी नेताओ को सुबह शाम दंडवत प्रणाम क्यूं करते ? गुंडों और नेताओं के तलवे क्यूं  चाटते ?  नेताओ ने पूरी कि पूरी न्याय व्यवस्था को रखैल बना दिया हैं जब चाहे जैसा चाहे वैसा नचा लो । जिस देश या जिस जगह पे न्याय नहीं मिलेगा वहां शांति कभी नहीं होगी और फिर शांति के बगैर कोई देश तरक्की कर ही नहीं सकता। 
                                                                                                            गोविन्द कुंवर