रात के 3 बज रहे होंगे
शायद अभी रात के 3 बज रहे होंगे
किसी छत के निचे मेरा चाँद भी सोया होगा
आधी रातों को उसे याद न कर ये दिल
इस दिल को कितनी बार समझाया होगा
शायद वो बार-बार करवटें बदलते होंगे
कम्बख्त मेरी यादों ने उसे कितनी बार जगाया होगा
गोविन्द कुंवर