यूं रोज़-रोज़ सपने में क्यों आते हो.....
यूं रोज़-रोज़ सपने में क्यों आते हो
ये शिलशिला तुम ख़त्म कर दो
सुभह नींद खुले और तुम आ जायो
मेरे सपने को मुकमल कर दो
गोविन्द कुंवर