घर लेके चला गया
वो किरायेदार कुछ दिन घर रहा फिर चला गया
मकान तो ज्यूँ का त्यूँ रहा, घर लेके चला गया
हंसी खुशी,प्यार रौशनी चांदनी सब उसके गुलाम थे
गुलामो की सब गठरी बांधी धीरे-से वो चला गया
मकान तो ज्यूँ का त्यूँ रहा, घर लेके चला गया
दीवारें रोती हुयी चौखटों से पूछती है किरायेदार था
या कोई किरदार,घर के किस्से कहानी ले के चला गया
मकान तो ज्यूँ का त्यूँ रहा, घर लेके चला गया
गोविन्द कुंवर