जिसे ढूंढता रहा
जिसे ढूंढता रहा रात-दिन ख्वाबों में
वो चेहरा मेरे घर के ही पास निकला
देखूं उसे तो दिल में हलचल कैसी
ना देखूं तो हर आईना उदास निकला
सब हुनर मालूम है, दुश्मनों से लड़ने का लेकिन
ज़ख़्म जब भी मिला कोई अपना ही खास निकला
उसने एक उम्र गवां दी है मकान को घर बनाने में
वो मर गया है दो गज कफन में एक लिबास निकला
गोविन्द कुंवर