आँखों के मयखाने
उसकी आँखों के मयखाने में तुम बैठ गए फिर
कैसा रुतबा,कैसी दुनिया भूल जाओगे सारे गम
उसके सुर्ख होठों से जब दो घूंट पी लिया फिर
बियर-व्हिस्की कैसा रम,उसके आगे सब है कम
गोविन्द कुंवर