सोच-सोच और डर-डर के क्या होगा
सोच-सोच और डर-डर के क्या होगा
तू कर्म कर,ये न सोच कि फल क्या होगा
आज,अभी और इसी पल में है ज़िन्दगी
ये न सोच कि आज से बेहतर कल होगा
चंद सिक्के भी साथ लिए चला चल
न जाने कब, कहाँ, कैसा सफर होगा
सिक्कों की खनक तभी है "गोविन्द"
जब किसी की ज़ुल्फ़ों की छाँव तले तेरा सर होगा
गोविन्द कुंवर