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दोस्ती की हद

दोस्ती की हद से अब मैं आगे निकल रहा हूँ
तू हर वक़्त मुझे,
क्या मैं भी तुझे याद आ रहा हूँ
तेरे करीब आकर मेरी सांसे उखड रही है,
सारी हस्ती बिखर रही है
मैं ख़ुद ही सँभल रहा हूँ,
और खुद ही उलझ रहा हूँ
तुझे देखकर भी, तुझे ही देखे जा रहा हूँ
तुम आँखों से पीला रहे हो
या मैं बे-नश्शा बहक रहा हूँ 
                                            गोविन्द कुंवर