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उससे दिल क्या लगाया

उससे दिल क्या लगाया
दिल का कही गुजारा न हुआ
दिल का हाल खस्ता ही रहा
कभी भी माला- माल न हुआ

वही "सुखन" के पल ये दिल ढूढ़ता रहा
कैसे समझायुं इसे वो जो था कभी
लेकिन अब वो हमारा न हुआ

इन आँखों ने कोई ख्याब नहीं देखा
एक बार उसे देखने के बाद और
ये भी खुदा को गंवारा न हुआ

मुझे खोकर तुम्हे क्या मिला
मेरी ख्वाइश,हशरतों का हिसाब लगाया
क्या नुकसान तुम्हारा न हुआ
                                              गोविन्द कुंवर