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झूठी तारीफ

उसने झूठी तारीफ क्या की 
मैंने भी हक़ीक़त भूला दी

वो कुछ कहते-कहते रूक सा गया
उसकी अनकही बातो में भी 
मैंने हा में हा मिला दी

उसकी नज़रो का मै ऐसा कातिल 
की जिरह का मौका भी न मिला
और उसने फैसला सुना दी

भुलाने मै उसको ज़माने लगे है
बस दो घूँट की ख़ातिर दोस्तों ने
फिर उसकी याद दिला दी

अच्छे दिन आएंगे सोचकर
मैंने भी कुछ ख्वाब सजा ली
नफरतो की आंधी ऐसी चली
सारी इंसानियत मिटा  दी

                           गोविन्द कुंवर