गुजर बसर
क्या था करना और ये क्या करने लगे है
जीना भूलकर, गुजर बसर करने लगे है
न ख्वाइस न कोई यक़ीं न कोई उम्मीद
सूखे पत्ते सा हवा के साथ चलने लगे है
अंदाजे बयां,आँखों की कशिश,लबों की मुस्कान
तुम फिर चले आओ हम तेरा चेहरा भुलने लगे है
गोविन्द कुंवर