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बिछड़े हुए लोग मिलते कैसे है

बिछड़े हुए लोग मिलते कैसे है
जो ना मिले फिर जीते कैसे है
आखरी लफ्ज कहा था कि भूल जाना
उसने बताया ही नहीं भुलाते कैसे है
दिन कट जाता है बस रात की बात है
जब कोई याद आये फिर सोते कैसे है
हंसी आती थी रोते हुए लोगों को देखकर
अब सोचता हूँ ताउम्र जख्म ढोते कैसे है
                               गोविन्द कुंवर